लोकप्रिय पोस्ट
-
भगत सिंह का आखिरी ख़त 22 मार्च ,1931 साथियों स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझ में भी होनी चाहिए , मैं इसे छिपाना नहीं चाहता । लेकिन म...
-
लेखक भगत सिंह को आह्वान करके क्या कहता है ------ देख ले आकै सारा हाल , क्यों देश की बिगड़ी चाल सोने की चिडया सै कंगाल , भ्रष्टाचार नै करी त...
-
भगत सिंह एक बात के द्वारा इस संसार के बारे में क्या कहते हैं कौन किसे की गेल्याँ आया कौन किसे की गेल्याँ जावै रै कमेरे नै तो रोटी कोन्या ...
-
भगत सिंह हिंदुस्तान के हालत देखकर क्या कहता है :- हिंदुस्तान की हालत देख कै मेरा कालजा धड कै रै यो गोरयां का राज आंख मैं कुनक की ढालां रड...
-
भगत सिंह बता कित तै आया इतना विश्वास तेरे मैं उमर तेईस साल की देखी आजादी की प्यास तेरे मैं फिरंगी के जुल्मों तैं दुखी भारत के नर और नारी ...
-
उस दौर में रूढीवाद का और स्वामियों का बहोत बोलबाला था । एक दिन भगत सिंह क्या सोचता है भला :- चारों और अँधेरा दिखे मानस हुया तंग फिरै अपने ...
-
भगत सिंह एक ही जीवन में विश्वास रखता था । पिछले और अगले जन्म में उसका विश्वास नहीं था । बहुत ही कम उम्र में उसने बहुत सारे साहित्य और राजनी...
शनिवार, 23 मार्च 2013
भगत सिंह का आखिरी ख़त
भगत सिंह का आखिरी ख़त
22 मार्च ,1931
साथियों
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझ में भी होनी चाहिए , मैं इसे छिपाना नहीं चाहता । लेकिन मैं एक शर्त पर जिन्दा रह सकता हूँ कि मैं कैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता ।
मेरा नाम हिंदुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रन्तिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है -इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊंचा मैं हरगिज नहीं हो सकता ।
आज मेरी कमजोरियां जनता के सामने नहीं हैं । अगर मैं फांसी से बाख गया तो वो जाहिर हो जायेंगी और क्रांति का प्रतीक -चिन्ह मध्धिम पड़ जायेगा या संभवत मिट ही जाये । लेकिन दिलेराना ढ ग से हँसते हँसते मेरे फांसी चढ़ने की सूरत में हिंदुस्तानी माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जायेगी कि क्रन्ति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी ।
हाँ एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थी , उनका हजारवां भाग भी पूरा नहीं कर सका , अगर स्वतंत्र जिन्दा रह सकता , तब शायद इन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता ।
इसके सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच फंसी से बचे रहने का नहीं आया । मुझसे अधिक सौभाग्य शाली कौन होगा ? आज कल मुझे खुद पर बहुत गर्व है । अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है । कामना है कि यह और नजदीक हो जाये ।
आपका साथी
भगत सिंह
22 मार्च ,1931
साथियों
स्वाभाविक है कि जीने की इच्छा मुझ में भी होनी चाहिए , मैं इसे छिपाना नहीं चाहता । लेकिन मैं एक शर्त पर जिन्दा रह सकता हूँ कि मैं कैद होकर या पाबंद होकर जीना नहीं चाहता ।
मेरा नाम हिंदुस्तानी क्रांति का प्रतीक बन चुका है और क्रन्तिकारी दल के आदर्शों और कुर्बानियों ने मुझे बहुत ऊंचा उठा दिया है -इतना ऊंचा कि जीवित रहने की स्थिति में इससे ऊंचा मैं हरगिज नहीं हो सकता ।
आज मेरी कमजोरियां जनता के सामने नहीं हैं । अगर मैं फांसी से बाख गया तो वो जाहिर हो जायेंगी और क्रांति का प्रतीक -चिन्ह मध्धिम पड़ जायेगा या संभवत मिट ही जाये । लेकिन दिलेराना ढ ग से हँसते हँसते मेरे फांसी चढ़ने की सूरत में हिंदुस्तानी माताएं अपने बच्चों के भगत सिंह बनने की आरजू किया करेंगी और देश की आजादी के लिए कुर्बानी देने वालों की तादाद इतनी बढ़ जायेगी कि क्रन्ति को रोकना साम्राज्यवाद या तमाम शैतानी शक्तियों के बूते की बात नहीं रहेगी ।
हाँ एक विचार आज भी मेरे मन में आता है कि देश और मानवता के लिए जो कुछ करने की हसरतें मेरे दिल में थी , उनका हजारवां भाग भी पूरा नहीं कर सका , अगर स्वतंत्र जिन्दा रह सकता , तब शायद इन्हें पूरा करने का अवसर मिलता और मैं अपनी हसरतें पूरी कर सकता ।
इसके सिवाय मेरे मन में कभी कोई लालच फंसी से बचे रहने का नहीं आया । मुझसे अधिक सौभाग्य शाली कौन होगा ? आज कल मुझे खुद पर बहुत गर्व है । अब तो बड़ी बेताबी से अंतिम परीक्षा का इंतजार है । कामना है कि यह और नजदीक हो जाये ।
आपका साथी
भगत सिंह
शनिवार, 4 फ़रवरी 2012
शुक्रवार, 3 फ़रवरी 2012
मेरा कालजा धड कै रै
भगत सिंह हिंदुस्तान के हालत देखकर क्या कहता है :-
हिंदुस्तान की हालत देख कै मेरा कालजा धड कै रै
यो गोरयां का राज आंख मैं कुनक की ढालां रडकै रै
भारत देश का यो किसान दुखी इसे गुलामी कर कै
माणस का होवै अपमान दुखी इसे गुलामी कर कै
मजदूर आज करै बखान दुखी इसे गुलामी कर कै
लोग लुगाई हर इन्सान दुखी इसे गुलामी कर कै
म्हारे खेत चार्ज गोरे दिन धोली खेत मैं बड़ कै रै ||
म्हारे देश की धरती पै हमनै नाज उगाया देखो
म्हारे कारीगरों नै मलमल यो गजब बनाया देखो
समाज पै घने टैक्स लगाये गोरयां नै सताया देखो
लाठी गोली चलवाई हमपै घणा जुलम कमाया देखो
देश तावला आजाद करावां ताहवां हाथ पकड़ कै रै ||
खान कई ढाल की म्हारी खनिज बहोत उपजावैं ये
बारूं मास नदी बहती रहैं फसल खूब लहलावैं ये
कारीगरों के सै हुनर निराले ताज महल बनावैं ये
मजदूर बहा खून पस्सीना बड़े बड़े डैम चलावैं ये
मिल कै स्त्री पुरुष सारे आजादी ल्यावां लड़ कै रै ||
आजादी और गुलामी का यो फरक समझ मैं आग्या
शोषण कारी तंत्र गोरयां का कति लूट लूट कै खाग्या
भारत वासी लेल्यो संभाला यो काला बादल छाग्या
जलियाँ वाला कांड देख कै मेरा जी घणा दुःख पाग्या
रणबीर बरोने आला ल्याया नया छंद घड कै रै ||
कित तै आया इतना विश्वास
भगत सिंह बता कित तै आया इतना विश्वास तेरे मैं
उमर तेईस साल की देखी आजादी की प्यास तेरे मैं
फिरंगी के जुल्मों तैं दुखी भारत के नर और नारी थे
फूट गेरो अर राज करो फिरंगी कसूते खिलारी थे
देश अपने मैं भिखारी थे पाया यो अहसास तेरे मैं ||
किताब पढ़न की आदत किताब पढी दुनिया भर की
विचार करकै पक्के तम्नै बजी लाई अपने सिर की
सुखदेव राजगुरु हर की मित्रता थी पास तेरे मैं ||
पूंजीवाद का खेल तम्नै पूरी तरियां समझ लिया रै
समाजवाद सै सही रास्ता इस्पे धार कदम दिया रै
इस ताहीं मरया अर जिया रै यो अंदाज खास तेरे मैं ||
पूंजीवाद पूरी दुनिया मैं हट कै कहर मचारया देख
समाजवाद का सपना तेरा रणबीर गीत बानारया देख
शहीदी दिवस मनारया देख आज बी करता आस तेरे मैं ||
कौन किसे की गेल्याँ आया
भगत सिंह एक बात के द्वारा इस संसार के बारे में क्या कहते हैं
कौन किसे की गेल्याँ आया कौन किसे की गेल्याँ जावै रै
कमेरे नै तो रोटी कोन्या यो लुटेरा घनी मौज उड़ावै रै
किस नै सै संसार बनाया किस नै रच्या समाज यो
म्हारा भाग तै भूख बताया सजै कामचोर कै ताज यो
मानवता का रुखाला क्यों पाई पाई का मोहताज यो
सरमायेदार क्यों लूट रहया मेहनतकश की लाज यो
क्यों ना समझां बात मोटी कून म्हारा भूत बनावै रै ||
कौन पहाड़ तौड़ कै करता धरती समतल मैदान ये
हल चला फसल उपजावै उसी का नाम किसान ये
कौन धरा नै चीर कै खोदै चांदी सोने की खान ये
ओहे क्यों कंगला घूम रहया चोर हुया धनवान ये
कर्मों का फल मिलता सबको नयों कह कै बहकावै रै ||
हम उठां अक जात पात का मिटा सकां कारोबार यो
हम उठां अक अनपढ़ता का मिटा सकां अंधकार यो
हम उठां अक जोर जुलम का मिटा सकां संसार यो
हम उठां अक उंच नीच का मिटा सकां व्योव्हार यो
जात पात और भाग भरोसै कोन्या पर बासावै रै ||
झुठ्याँ पै ना यकीन करो माहरी ताकत सै भरपूर
म्हारी छाती तै टकरा कै गोली होज्या चकनाचूर
जागते रहियो मत सोजाईयो म्हारी मंजिल नासै दूर
सिर्जन हारे हाथ म्हारे सें रणबीर घने अजब रनसूर
भगत सिंह आजादी खातर फांसी चूमी चाहवै रै ||
सदस्यता लें
संदेश (Atom)